Tuesday, 9 July 2013

खेत पाठशाला का तीसरा सत्र: राजपुरा

"किट नियंत्रनायः कीटा:  ही: अस्त्रमोघा"  हर बार की तरह इस बार भी खेत पाठशाला का तीसरा सत्र इस पंक्ति के साथ शुरू हुआ। जामुन के पेड़ के नीचे सब किसान इक्कठा हुए और रणनीति  तैयार  कर सब पांच पांच के समूह में बट गए। शिघ्र ही कीड़ो की पहचान करने का सिलसिला शुरू हो गया। कीट  कमाण्डो रणबीर ने नए आये किसानों को कीड़ो की पहचान करवाई। सभी समूहों ने कीड़ो का आकलं कापी पे लिखा जिसमे मेजर कीड़े थे हरा तेला, सफ़ेद माखी और चेपा व् चुरडा।

 सबसे रोचक बात नए किसानो के लिए थी जिन्होंने कराईसोपा के बच्चे को चुरडा खाते हुए देखा। विश्लेषण पर पाया गया की सफ़ेद माखी की प्रति पत्ता 2.7 औसत आई जबकि वैज्ञानिको के अनुसार अगर ये 6 तक है तो कोई चिंता की बात नही है। ऐसे ही हरा तेले की 2 व् चुरड़े की प्रति  पत्ता 10 होती है। जबकि इनकी मात्र मात्रा 1.7  व् 3.3 पायी गयी जोकि खतरे की मात्रा से बहुत नीचे थी। फसलो में फलेरी बुगडा,हंडेर बीटल व् सिंगु बुगडा भी पाए गए जो की सौ के सौ मासाहारी है। डॉ कमल सैनी ने बताया की कैसे हम महंगे खाद से बच सकते है। सैनी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा की ज़मीन की PH वैल्यू अगर 6.5 से  7.5 के बीच है तो हमें कोई बाहरी उर्वरक डालने की जरुरत नहीं है क्योकि जमीन में वो पहले सी ही मोजूद होते है। उन्होने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा की किसान 5 से 10  हजार रपये तक बचा सकते है खाद और उर्वरक के रूप में। उन्होंने बताया की जो उर्वरक बाजार में मिल रहे है वे महंगे है और उनसे डेढ़ गुना ज्यादा व् असरदार उर्वरक किसान घर पर भी बना सकते है,  जिंक यूरिया और DAP का घोल तैयार कर के जो की बाजार में बहुत सस्ते दाम पे मिलते है।कृषि विभाग के जिला उपनिदेशक डॉ रामप्रसाद सिहाग बतोर मुख्यातिथि उपस्थित थे। उन्होंने किसानो को संबोधित करते हुए कहा की  यह एक अनूठी मुहिम  है और किसान जरुर कामयाब होंगे  और बाक्लियों के साथ इस पाठशाला का अंत हुआ ।